Friday, September 26, 2014

छाले

खतरा तुम्हें ही नहीं , सहमा हुआ भगवान भी है ...
मैंने बहुत से मंदिरों पर लटके ताले देखे हैं ...

मत कह पगले के वक़्त तेरी मुठ्ठी में कैद है ...
मैंने मुंह से वापस निकलते निवाले देखे हैं ...

माँ बाप से पूछना कभी अँधेरा क्या चीज़ है ...
तूने ज़िन्दगी में अभी तक सिर्फ उजाले देखे हैं ...

लोग तो मेरी झूठी हंसी पर हँसते रहे मेरे साथ ...
सिर्फ मेरी माँ ने मेरे मुंह के छाले देखे हैं ...

Tuesday, September 23, 2014

गांव

बुरे वक्त में जरूरतमंद का साथ नहीं छोड़ा मैंने …
कितने ही दबे होठों की चुप्पियों को तोडा मैंने … 
वोही आदतें , संस्कार , भोलापन और सादगी … 
शहर में रहता हूँ मगर गांव नहीं छोड़ा मैंने …

Sunday, September 21, 2014

तस्वीर

उसकी तस्वीर सामने आई आज मुद्दतों के बाद ...
सर से चली एक कम्पन सी मेरे पांव तक पहुंची ...

वोही अंदाज-ऐ-मुस्कराहट वोही कातिल हर अदा ...
निकल तस्वीर से वो हूर परि मेरी बाँहों तक पहुंची ...

एक अच्छे घर के लड़के ने तेरा थाम लिया दामन ...
खबर ये शहर शहर होती हुई मेरे गाँव तक पहुंची ...

अच्छा था वो फैसला मुझे छोड़ के उसको अपनाना ...
धूप धूप होती हुई आखिर छाओं तक पहुंची ...

तू पाक पवित्र है प्रिये कोई दाग नहीं है तुझपे ...
तू गंगा जैसी है तभी शिव की जटाओं तक पहुंची ...

तू खुश रहे , हंसती रहे ,फुले फले ,यश ख्याति हो...
निकलकर येही दुआ मेरे दिल से फिजाओं तक पहुंची ...

Tuesday, September 16, 2014

आजकल

जो बेचते हैं आबरू ,खुलेआम बाजार में ,,,
वो कहने लगे हैं खुद को खान-दानी आजकल …

कितने हैं महबूब किसी के , गिनना पड़ता है ,,,
नहीं रही किसी को जरा भी गिलानी आजकल …

मेरे चाँद को खुले आसमां की हवा लग गई ज़माने वालो ,,,
कमबख्त बहुत करने लगा है आना-कानी आजकल …

अपनी यादों से कहो जरा दबे पाओं आया करे ,,,
मेरा बाप करने लगा है मेरी निगरानी आजकल …

कमाल तो ये है के मैं ज़िंदा कैसे हूँ ,,,
बहुत दूर रहता है मेरा दिल-जानी आजकल …

हवा चली तो मेरे यार की खुशबु मुझे नसीब हुई ,,,
बहुत रहती है मुझपे खुदा की मेहरबानी आजकल …

एक कातिल सा मासूक हो और सिनेमाघर की आखिरी सीट ,,,
बस इतनी सी रह गयी है रवि जवानी आजकल …

मदीना

कट रही है ज़िन्दगी , कोई जीना नहीं है अब
दिल मेरा मोहब्बत का मदीना नहीं  है अब
कुछ मुझको छोड़ गए कुछ  को मैंने छोड़ दिया
मेरे अकेलेपन के दर्द की कोई सीमा नहीं है अब…

Sunday, September 14, 2014

सोफे हैं , कालीन है , झुमका है , झूमर है …

सोफे हैं , कालीन है , झुमका है , झूमर है …
मगर घर जैसा तेरे घर में कुछ भी नहीं है  …

मेरे घर में प्यार है ,  वफ़ा है , दुलार है …
अफ़सोस ये सब तेरी नज़र में कुछ भी नहीं है …

मेरा दिल बाजार है ,सुकून , ख़ुशी और ख़ाबों का …
तेरे लायक मेरे बाज़ार सदर में कुछ भी नहीं है …

मैंने माना हैं लाख खामियां तेरे अंदर साजन मेरे …
फिर भी तू नहीं तो मेरे सफर में कुछ भी नहीं है …

सोफे हैं , कालीन है , झुमका है , झूमर है …
मगर घर जैसा तेरे घर में कुछ भी नहीं है  …