Thursday, November 17, 2016

बड़ा नोट

क्या क्या नहीं कुकर्म ये करता है बड़ा नोट
कभी करवाता पेशावर तो कभी पठानकोट ...
कहीं खुले आम खून की होली कहीं पे विस्फोट
गलत आदमी राजा बनता खरीद के हर वोट ...
ईमानदारी को मिला इनाम हुई बे-इमानि पर चोट 
खुश हुए कंगाल बहुत, रोये वो जिनकी जेब में खोट ...
हार गयी है जीन्स आज और जीत गया लंगोट
मोदी जी ने नो बॉल पर क्या खूब लगाया शॉट ...
थोड़ी सी कड़वी दवाई है जो पी गए तो जी गए
जनता खुश नेता परेशां , फैसला ऑन द स्पॉट ...
उनकी सोचो जो बदल रहे गोली के बदले गोली
तुम तो फिर भी बदल रहे हो नोट के बदले नोट ...

Wednesday, June 15, 2016

साल इक्कीसवां

साल इक्कीसवां लगा हुआ था ,रातों को मैं जगा हुआ था ,,,
नया नया मुझसे दगा हुआ था , हुस्न का मैं ठगा हुआ था ...

नयी नयी आई जवानी थी , उम्मीदें बड़ी तूफानी थी ,,,
एक अपनी भी मस्तानी थी , मैं मछली था वो पानी थी ...

ना धुप लगे ना छाओं लगे , मेरा धरती पे ना पाओं लगे ,,,
दिल दुश्मन देह का हुआ  , ना शहर लगे ना गाओं लगे ...

ज़िन्दगी फरयादी लगती थी , दुनिया मेरी आधी लगती थी ,,,
हर एक सांस मुझको उसके बिना , बे-बुनियादी लगती थी ...

कहने लगा उससे बात करो , मुझे बन्दा एक अनुभवी मिला ,,,
दिल की बात उसे कहने को  , उससे जाके रवि मिला ,,,
उजाड़ दी दिल की दुनिया उसने किया एक-तरफ़ा फैसला ,,,
तो खुद की पीठ थपथपाने को , मुझको खुद में एक कवि मिला ...

Monday, June 13, 2016

आईना

जब मुर्दे मुझे जीना सिखाने लगे
मेरे तो तब जाके होश ठिकाने लगे
मैं जरा सा औकात से बाहर क्या निकला
मेरे शागिर्द तक मुझे आईना दिखाने लगे ...

Thursday, May 5, 2016

काठ का घोड़ा

याद आई ''एक रुपये की 20 टॉफी'' और बिस्किट 555 की
तो ख्याल आया की क्यों ना आपको सैर करा दूँ बचपन की...

ज़िन्दगी आज इतनी कड़वी है तब बहुत ही मीठी लगती थी
कोहिनूर से ज्यादा कीमती, प्लास्टिक की अंगूठी लगती थी ...

रंग बिरंगी बरफ का गोला हटता नहीं था होठों से
कागज का बटुआ भरा होता था कागज के ही नोटों से ...
 
कभी उसने मुझको, तो कभी मैंने उसको पीछे छोड़ा
वो युद्ध का मैदान और वो काठी वाला काठ का घोड़ा ...

हालत देखने वाली होती, अपनी कॉपी के गत्तों की
श्याम को श्यामत आती थी, मधुमख्खी के छत्तों की ...

बहुत कसरत करवाते थे उन गली में घूमते कुत्तों की
बड़े टशन में चलते थे, लगाके ऐनक पीपल के पत्तों की ...

ना क़िस्त का पंगा ना उधार, थे घर में ही बनाते कार
टूटी चप्पल के दो टायर बनाए, दो मिनट में गाड़ी तैयार ...

अपनी मस्ती में मस्त थे ना बाहर की चिंता थी ना घर की
जान से प्यारी लगती थी, बरगद के पत्तों वाली फिरकी ...

हमारे लिए तो वो ही थी बस सबसे प्यारा साज
आधी छुट्टी वाली घंटी की, टन टन की आवाज ...

पूरी दुनिआ समेट लेने को दवात के एक ढक्कन में
मैं अब जा नहीं सकता, लौटके अपने बचपन में ...

उछल कूद गर ना करूँ तो मन पूरा दिन कच्चा रहता है
मेरे दिल के किसी कोने में आज भी एक बच्चा रहता है ...

ना फिसलने का डर होता ना गिरने का
इस ऊंचाई पर अगर मैं चढ़ा नहीं होता ...
दुनियादारी के ये सब झमेले ना होते ,
काश रवि ! तू कभी बड़ा नहीं होता ...

Tuesday, April 12, 2016

थकी थकी सी रुकी रुकी सी ज़िन्दगी

थकी थकी सी रुकी रुकी सी ज़िन्दगी 
जैसे किसी सहारे की मोहताज सी है 

अजनबी निगाहों से देखता है हर कोई 
अपनों की भी बदली हुई अब आवाज सी है 

हारा हुआ मैं एक गरीब सहन्शाह ही सही 
तू मगर मेरे दिल में आज भी मुमताज सी है 

ये मत सोचना के कोई नहीं है तेरा जहाँ में 
आज भी शान तेरी इन नजरों में किसी ताज सी है 

मेरी मोहब्बत है आज भी ज़िंदा ज़माने में 
आज भी तेरी नजरों में मेरे लिए ये जो लाज सी है

Monday, April 11, 2016

तेरे छू लेने से ...


वो जो मर चूका है मासूम सा बच्चा मेरे अंदर का ...
हो भी सकता है तेरे छू लेने से ज़िंदा हो जाए ...
दिल मेरा जो काल कोठरी में कैद है ज़माने से ...
तेरे मिलने की आस में हो सकता है परिंदा हो जाए ...
प्रयास प्रेम को पाने के कम नहीं होने देना रवि ...
बहुत मुमकिन है खुदा खुद ही कभी शर्मिंदा हो जाए ...

Friday, April 8, 2016

मयखाना ...


हिम्मत जब हालात से हार जाती है तो पीता हूँ ...
कड़ी मेहनत जब कभी बेकार जाती है तो पीता हूँ ...
यूँ ही नहीं नज़र आता मैं बात बात पे मयखाने में ...
किस्मत जब कोई ताना मार जाती है तो पीता हूँ ...