Tuesday, April 12, 2016

थकी थकी सी रुकी रुकी सी ज़िन्दगी

थकी थकी सी रुकी रुकी सी ज़िन्दगी 
जैसे किसी सहारे की मोहताज सी है 

अजनबी निगाहों से देखता है हर कोई 
अपनों की भी बदली हुई अब आवाज सी है 

हारा हुआ मैं एक गरीब सहन्शाह ही सही 
तू मगर मेरे दिल में आज भी मुमताज सी है 

ये मत सोचना के कोई नहीं है तेरा जहाँ में 
आज भी शान तेरी इन नजरों में किसी ताज सी है 

मेरी मोहब्बत है आज भी ज़िंदा ज़माने में 
आज भी तेरी नजरों में मेरे लिए ये जो लाज सी है

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