Tuesday, April 12, 2016

थकी थकी सी रुकी रुकी सी ज़िन्दगी

थकी थकी सी रुकी रुकी सी ज़िन्दगी 
जैसे किसी सहारे की मोहताज सी है 

अजनबी निगाहों से देखता है हर कोई 
अपनों की भी बदली हुई अब आवाज सी है 

हारा हुआ मैं एक गरीब सहन्शाह ही सही 
तू मगर मेरे दिल में आज भी मुमताज सी है 

ये मत सोचना के कोई नहीं है तेरा जहाँ में 
आज भी शान तेरी इन नजरों में किसी ताज सी है 

मेरी मोहब्बत है आज भी ज़िंदा ज़माने में 
आज भी तेरी नजरों में मेरे लिए ये जो लाज सी है

Monday, April 11, 2016

तेरे छू लेने से ...


वो जो मर चूका है मासूम सा बच्चा मेरे अंदर का ...
हो भी सकता है तेरे छू लेने से ज़िंदा हो जाए ...
दिल मेरा जो काल कोठरी में कैद है ज़माने से ...
तेरे मिलने की आस में हो सकता है परिंदा हो जाए ...
प्रयास प्रेम को पाने के कम नहीं होने देना रवि ...
बहुत मुमकिन है खुदा खुद ही कभी शर्मिंदा हो जाए ...

Friday, April 8, 2016

मयखाना ...


हिम्मत जब हालात से हार जाती है तो पीता हूँ ...
कड़ी मेहनत जब कभी बेकार जाती है तो पीता हूँ ...
यूँ ही नहीं नज़र आता मैं बात बात पे मयखाने में ...
किस्मत जब कोई ताना मार जाती है तो पीता हूँ ...

परिंदा

कभी कभी मैं सोचता हूँ परिंदा होता मैं
जब तक मर नहीं जाता तब तक तो जिन्दा होता मैं