Sunday, January 18, 2015

लिखता हूँ

किसी ने मुझसे पूछा "क्या करते हो ?"
मैंने कहा " लिखता हूँ "
उसने पूछा "क्या लिखते हो ?"
मैंने कहा :----

वो जो बेहोश हैं नशे में जवानी में और इश्क़ में
उनके लिए मैं अपनी कलम से होश लिखता हूँ

वो जो हार चुके हैं हिम्मत, खो चुके सारी उम्मीदें
उनके लिए मैं जीने का नया जोश लिखता हूँ

वो जो जल्लाद हैं जो पीते हैं खून गरीबों का
उनको मैं अपनी लिखाई में खानाबदोश लिखता हूँ

यूँ ना सोचे कोई के लिखावट में नरमी है बहुत
उतना ही शोर मचाती हैं जितना खामोश लिखता हूँ

जरा भी फर्क नहीं करती मेरी कलम राजा और रंक में
जो दोषी होता है मैं उसी का दोष लिखता हूँ

नाचने लगती हैं मेरे साथ ज़माने भर की दुविधाएं
जब खोके होशो हवास होके मदहोश लिखता हूँ

Thursday, January 8, 2015

सूनी देखी हैं मैंने दहलीज अक्सर महलों की

सूनी देखी हैं मैंने दहलीज अक्सर महलों की
बहारों को खेलते मैंने झोंपड़ियों में देखा है

जब होनी चाहिए थी धुन कोने-कोने में शहनाई की
मैंने मायूसी का तांडव उन घड़ियों में देखा है

घूमता है यहाँ दिन रात गुनहगार खुले-आम
इन्साफ को जकड़े मैंने हथकड़ियों में देखा है

भले ही तुम खोजो ख़ुशी को दौलत के बाज़ारों में
हर ख़ुशी को मैंने तो बस फुलझड़ियों में देखा है

तू क्या जाने उतार चढाव ज़िन्दगी के रवि
वक़्त को तो तूने सिर्फ दीवार-घड़ियों में देखा है