Thursday, April 30, 2015

जिंदगी मैं तुझसे नाता ना तोड़ता तो क्या करता

ज़माने ने तेरे आशिक के हाथ काट लिए
तुझे तेरे हाल पे ना छोड़ता तो क्या करता

हुस्न सर झुकाये खड़ा था मोहब्बत की अदालत में
मैं इल्जाम अपने सर पर ना ओढ़ता तो क्या करता

माँ बहुत परेशां होती थी मुझे बिखरे हुए को देखके
तिनका-2 मैं खुद को गर ना जोड़ता तो क्या करता

मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया कातिल मेरा 
मैं उसे पकड़के ना झंझोड़ता तो क्या करता

मेरा इन्तजार करते करते बूढ़ी हो गई मौत मेरी
जिंदगी मैं तुझसे नाता ना तोड़ता तो क्या करता

Wednesday, April 8, 2015

जिंदगी की दौड़ में मैं जरा सा ठहरके ...पीछे मुड़के तुझे जो देखूं देखता रहूँ

जिंदगी की दौड़ में मैं जरा सा ठहरके
पीछे मुड़के तुझे जो देखूं देखता रहूँ
घाव दिल के जो रिसते रहे हैं रातों को
तेरी तस्वीर के फावों से सेकता रहूँ
दिल चाहता है छांट लूँ हसीं हसीं लम्हे
और जो हों दर्ददाई उन्हें फेंकता रहूँ
मैं तेरे रंग रूप और सूरत को रात भर
भले कलम टूट जाये मगर लिखता रहूँ

हर अदा पे सो सो बार निकले है दम
कहाँ से तुझे शुरू करूँ कहाँ पे खत्म

कितनी भी रख लो तुम चेहरे पे हथेलियाँ
आँखें आज भी करती हैं तेरी वोही अटखेलियां
हर नजर तुझपे आके ठहर जाती होगी
जलके खाक हो जाती होंगी तेरी ही सहेलियां

आज भी तेरी जुल्फें दिन को रात करती हैं
भले तुम चुप बैठे रहो आँखें बात करती हैं
मेरा सब कुछ लूट के तेरी ये कलमुही नजरें
मुझे दुनिया की इस भीड़ में अनाथ करती हैं

नरम होठों पे है सुबह के सूरज की लाली
छरहरा बदन है जैसे चन्दन की डाली
कौन कलम से लिखी गई है किस्मत उस हकीर की
खुदा का जो भी बन्दा है इस बाग़ का माली...