Wednesday, June 15, 2016

साल इक्कीसवां

साल इक्कीसवां लगा हुआ था ,रातों को मैं जगा हुआ था ,,,
नया नया मुझसे दगा हुआ था , हुस्न का मैं ठगा हुआ था ...

नयी नयी आई जवानी थी , उम्मीदें बड़ी तूफानी थी ,,,
एक अपनी भी मस्तानी थी , मैं मछली था वो पानी थी ...

ना धुप लगे ना छाओं लगे , मेरा धरती पे ना पाओं लगे ,,,
दिल दुश्मन देह का हुआ  , ना शहर लगे ना गाओं लगे ...

ज़िन्दगी फरयादी लगती थी , दुनिया मेरी आधी लगती थी ,,,
हर एक सांस मुझको उसके बिना , बे-बुनियादी लगती थी ...

कहने लगा उससे बात करो , मुझे बन्दा एक अनुभवी मिला ,,,
दिल की बात उसे कहने को  , उससे जाके रवि मिला ,,,
उजाड़ दी दिल की दुनिया उसने किया एक-तरफ़ा फैसला ,,,
तो खुद की पीठ थपथपाने को , मुझको खुद में एक कवि मिला ...

Monday, June 13, 2016

आईना

जब मुर्दे मुझे जीना सिखाने लगे
मेरे तो तब जाके होश ठिकाने लगे
मैं जरा सा औकात से बाहर क्या निकला
मेरे शागिर्द तक मुझे आईना दिखाने लगे ...