Monday, November 23, 2015

मैं अब ज़िन्दगी को थोड़ी सी ढलान पर ले आया ...

दौलत है शोहरत है मगर सन्नाटा तन्हाई है ...
ये खुद को मैं मुर्ख किस मुकाम पर ले आया ...
दर्द , ठोकरें , दुत्कार ,पुकार बची हैं जहाँ ...
मेरा नसीब मुझे खिंच उस दूकान पर ले आया ...

मैंने कहा मुझे ले चलो थोड़ा सुकूं मिले जहाँ ...
कोई भला आदमी मुझे मेरे मकान पर ले आया ...

उदास मन से मैंने कहा मेरा दिल नहीं लगता यहाँ ...
हाथ पकड़के मुझे मेरा दिलबर चाँद पर ले आया ...

नीचे देखूं तो मेरी हकीकत परेशां दिखती है  ...
मेरे मौला तू मुझे ये किस उड़ान पर ले आया ...

पहले परखता , थोड़ा सहन , थोड़ा सब्र तो करता...
तू बहुत जल्दी रिश्ते को उफान पर ले आया ...

अगर रुक भी जाये किसी रोज तो धक्का शुरू हो सके ...
मैं अब ज़िन्दगी को थोड़ी सी ढलान पर ले आया ...

Tuesday, May 19, 2015

किनारा कर गए

जब डूब रहे थे मंझधार में तो हमदर्द थे बहुत
किनारे पर जब आए तो किनारा कर गए

मेरे अपनों ने मुझे कुछ यूँ किया बर्बाद
मुझे दे देकर सहारा बे-सहारा कर गए

दात देता हूँ उनके हर अदब हर अदा की
मुझे मेरी ही महफ़िल में बेचारा कर गए

एक तुम हो जो शरबत में भी नुक्स ढूंढते हो
एक हम थे जो पानी पीकर गुजारा कर गए

मैंने कहा मैं कहाँ पे ढूंढूं चैन,सुकून और शांति
मुस्कुराके वो शमशान की तरफ इशारा कर गए

जाने कैसे पचा लेते हैं लोग श्याम को काले चने
मुझे तो कमबख्त खाते ही अफारा कर गए...

Wednesday, May 13, 2015

शराबी

शहर ये अब खाली खाली ना लगे तो क्या करे
लोग तो सब भर्ती हो गए हस्पतालों में...

सकल सूरत तो अच्छे भले इंसान की लगती है
जाने कौन-2 छुपा बैठा है रंग बिरंगी खालों में...

वो सहंशाह-ऐ-ताज जिसके पास माँ नहीं है
गिन ही लूँ मैं उसे भी शहर के कंगालों में...

मेरी सलाह है मुझे हल्के में मत ले मेरे दुश्मन
जिंदगी मेरी गुजरी है तूफानों में भुचालों में...

तकलीफ चांदनी देने लगे और मरहम करने लगे अँधेरा
तो फिर कौन जाना चाहेगा अंधियारों से उजालों में...

हसीं लम्हे हैं रंगीन वादियां दिल बेचैन
आओ फूल लगा दूँ बालों में...

चले आओ तुम प्यार करो मैं भी तो देखूं
कौन रोकता है तुम्हें आने से मेरे खयालों में...

शराबी नहीं हैं हम बस गम भुलाने को
लगा लेते हैं कभी कभी इक्का दुक्का सालों में...

Thursday, April 30, 2015

जिंदगी मैं तुझसे नाता ना तोड़ता तो क्या करता

ज़माने ने तेरे आशिक के हाथ काट लिए
तुझे तेरे हाल पे ना छोड़ता तो क्या करता

हुस्न सर झुकाये खड़ा था मोहब्बत की अदालत में
मैं इल्जाम अपने सर पर ना ओढ़ता तो क्या करता

माँ बहुत परेशां होती थी मुझे बिखरे हुए को देखके
तिनका-2 मैं खुद को गर ना जोड़ता तो क्या करता

मुझे देखते ही हक्का बक्का रह गया कातिल मेरा 
मैं उसे पकड़के ना झंझोड़ता तो क्या करता

मेरा इन्तजार करते करते बूढ़ी हो गई मौत मेरी
जिंदगी मैं तुझसे नाता ना तोड़ता तो क्या करता

Wednesday, April 8, 2015

जिंदगी की दौड़ में मैं जरा सा ठहरके ...पीछे मुड़के तुझे जो देखूं देखता रहूँ

जिंदगी की दौड़ में मैं जरा सा ठहरके
पीछे मुड़के तुझे जो देखूं देखता रहूँ
घाव दिल के जो रिसते रहे हैं रातों को
तेरी तस्वीर के फावों से सेकता रहूँ
दिल चाहता है छांट लूँ हसीं हसीं लम्हे
और जो हों दर्ददाई उन्हें फेंकता रहूँ
मैं तेरे रंग रूप और सूरत को रात भर
भले कलम टूट जाये मगर लिखता रहूँ

हर अदा पे सो सो बार निकले है दम
कहाँ से तुझे शुरू करूँ कहाँ पे खत्म

कितनी भी रख लो तुम चेहरे पे हथेलियाँ
आँखें आज भी करती हैं तेरी वोही अटखेलियां
हर नजर तुझपे आके ठहर जाती होगी
जलके खाक हो जाती होंगी तेरी ही सहेलियां

आज भी तेरी जुल्फें दिन को रात करती हैं
भले तुम चुप बैठे रहो आँखें बात करती हैं
मेरा सब कुछ लूट के तेरी ये कलमुही नजरें
मुझे दुनिया की इस भीड़ में अनाथ करती हैं

नरम होठों पे है सुबह के सूरज की लाली
छरहरा बदन है जैसे चन्दन की डाली
कौन कलम से लिखी गई है किस्मत उस हकीर की
खुदा का जो भी बन्दा है इस बाग़ का माली...

Thursday, February 26, 2015

दिल को इंतजार नहीं रहा

देखता रहता है खोया खोया सा इधर उधर
किसी का भी अब दिल को इंतजार नहीं रहा

इतना भटका प्यार की प्यास में मारा मारा
प्यास मर गई और अब वो करार नहीं रहा

ये वोही है जिसे इक पल का भी चैन नहीं था
शांत है अब दिल इतना बेकरार नहीं रहा

जो इस पथ्थर दिल पे फिर से चोट कर सके
ज़माने में अब ऐसा कोई हथियार नहीं रहा

बदतमीज सा हो गया है अब एक नहीं सुनता
दिल मेरा अब पहले सा समझदार नहीं रहा

मायूस होके लौट गए सब हंसी मांगने वाले
खुद लूट चूका हूँ मैं अब जमींदार नहीं रहा

कर्जवान हुआ करता था किसी के प्यार का
सब चूका दिया अब किसी का उधार नहीं रहा

आंधी बनके दिल्लगी सब उड़ा ले गई
फकीरों का सब लूट गया घर बार नहीं रहा ...

Wednesday, February 11, 2015

सहारा चाहिए

तेरी सो मजबूरियां रही होंगी मेरा क़त्ल करने की
मैं खुद मर जाऊं इक बस तेरा इशारा चाहिए

तेरे दिल की तू जाने मगर मेरी आरजू है ये
हर एक सांस मुझे मेरा नहीं , हमारा चाहिए

तिनका-तिनका शमशान ले जा रहा ये दर्द
जरा जरा सा नहीं अब तो मुझे सारा चाहिए

गहरा समंदर ,खूंखार तूफ़ान ,बेबस मांझी
एक डूबती हुई नैया को किनारा चाहिए

डगमगाते कदम ,सुनसान गलियां ,दर्द-ऐ-दिल
रवि बाबू आज तुझे भी कोई सहारा चाहिए

Tuesday, February 3, 2015

फ़कीर

धुआं सा लग गया है हर सांस को जैसे
यूँ ही खिंचा खिंचा सा पूरा शरीर रहता है

हर कदम रुकूँ मैं , सोचूं मैं ,जाना है कहाँ
आजकल मेरे अंदर एक हकीर रहता है

आज तू नहीं , तेरा साथ नहीं ,सौगात नहीं
सड़कों पे सना धुल में एक फ़कीर रहता है

शायद के बरसात हो वीराने बंजर दिल पे
इसी चाह में भटकता कोई राहगीर रहता है

दहलीज पर ना जाने कब हुस्न दस्तक दे
इसी ताक़ में खड़ा पूरा दिन वजीर रहता है

बहुत पुराना साथी बहुत दूर चला गया है
नयनों में अब जरा जरा सा नीर रहता है

ठोकरें बहुत लगी मगर गिरते गिरते बचा हूँ
मेरे साथ हर वक़्त मेरा पीर रहता है

इश्क़ ने इस सहर में तबाही मचा रखी है
हर गली हर कूचे पर एक कबीर रहता है...

Sunday, January 18, 2015

लिखता हूँ

किसी ने मुझसे पूछा "क्या करते हो ?"
मैंने कहा " लिखता हूँ "
उसने पूछा "क्या लिखते हो ?"
मैंने कहा :----

वो जो बेहोश हैं नशे में जवानी में और इश्क़ में
उनके लिए मैं अपनी कलम से होश लिखता हूँ

वो जो हार चुके हैं हिम्मत, खो चुके सारी उम्मीदें
उनके लिए मैं जीने का नया जोश लिखता हूँ

वो जो जल्लाद हैं जो पीते हैं खून गरीबों का
उनको मैं अपनी लिखाई में खानाबदोश लिखता हूँ

यूँ ना सोचे कोई के लिखावट में नरमी है बहुत
उतना ही शोर मचाती हैं जितना खामोश लिखता हूँ

जरा भी फर्क नहीं करती मेरी कलम राजा और रंक में
जो दोषी होता है मैं उसी का दोष लिखता हूँ

नाचने लगती हैं मेरे साथ ज़माने भर की दुविधाएं
जब खोके होशो हवास होके मदहोश लिखता हूँ

Thursday, January 8, 2015

सूनी देखी हैं मैंने दहलीज अक्सर महलों की

सूनी देखी हैं मैंने दहलीज अक्सर महलों की
बहारों को खेलते मैंने झोंपड़ियों में देखा है

जब होनी चाहिए थी धुन कोने-कोने में शहनाई की
मैंने मायूसी का तांडव उन घड़ियों में देखा है

घूमता है यहाँ दिन रात गुनहगार खुले-आम
इन्साफ को जकड़े मैंने हथकड़ियों में देखा है

भले ही तुम खोजो ख़ुशी को दौलत के बाज़ारों में
हर ख़ुशी को मैंने तो बस फुलझड़ियों में देखा है

तू क्या जाने उतार चढाव ज़िन्दगी के रवि
वक़्त को तो तूने सिर्फ दीवार-घड़ियों में देखा है