जब डूब रहे थे मंझधार में तो हमदर्द थे बहुत
किनारे पर जब आए तो किनारा कर गए
मेरे अपनों ने मुझे कुछ यूँ किया बर्बाद
मुझे दे देकर सहारा बे-सहारा कर गए
दात देता हूँ उनके हर अदब हर अदा की
मुझे मेरी ही महफ़िल में बेचारा कर गए
एक तुम हो जो शरबत में भी नुक्स ढूंढते हो
एक हम थे जो पानी पीकर गुजारा कर गए
मैंने कहा मैं कहाँ पे ढूंढूं चैन,सुकून और शांति
मुस्कुराके वो शमशान की तरफ इशारा कर गए
जाने कैसे पचा लेते हैं लोग श्याम को काले चने
मुझे तो कमबख्त खाते ही अफारा कर गए...