Tuesday, May 19, 2015

किनारा कर गए

जब डूब रहे थे मंझधार में तो हमदर्द थे बहुत
किनारे पर जब आए तो किनारा कर गए

मेरे अपनों ने मुझे कुछ यूँ किया बर्बाद
मुझे दे देकर सहारा बे-सहारा कर गए

दात देता हूँ उनके हर अदब हर अदा की
मुझे मेरी ही महफ़िल में बेचारा कर गए

एक तुम हो जो शरबत में भी नुक्स ढूंढते हो
एक हम थे जो पानी पीकर गुजारा कर गए

मैंने कहा मैं कहाँ पे ढूंढूं चैन,सुकून और शांति
मुस्कुराके वो शमशान की तरफ इशारा कर गए

जाने कैसे पचा लेते हैं लोग श्याम को काले चने
मुझे तो कमबख्त खाते ही अफारा कर गए...

Wednesday, May 13, 2015

शराबी

शहर ये अब खाली खाली ना लगे तो क्या करे
लोग तो सब भर्ती हो गए हस्पतालों में...

सकल सूरत तो अच्छे भले इंसान की लगती है
जाने कौन-2 छुपा बैठा है रंग बिरंगी खालों में...

वो सहंशाह-ऐ-ताज जिसके पास माँ नहीं है
गिन ही लूँ मैं उसे भी शहर के कंगालों में...

मेरी सलाह है मुझे हल्के में मत ले मेरे दुश्मन
जिंदगी मेरी गुजरी है तूफानों में भुचालों में...

तकलीफ चांदनी देने लगे और मरहम करने लगे अँधेरा
तो फिर कौन जाना चाहेगा अंधियारों से उजालों में...

हसीं लम्हे हैं रंगीन वादियां दिल बेचैन
आओ फूल लगा दूँ बालों में...

चले आओ तुम प्यार करो मैं भी तो देखूं
कौन रोकता है तुम्हें आने से मेरे खयालों में...

शराबी नहीं हैं हम बस गम भुलाने को
लगा लेते हैं कभी कभी इक्का दुक्का सालों में...