Wednesday, November 19, 2014

गोलियों की आवाजें

गोलियों की आवाजें जब से आने लगी मंदिरों से ...
भगवान भाग खड़े हुए हैं निकल अपने अपने घरों से ...
अपना वजूद बचा लो तो बेहतर होगा जिन्दा लोगो !!!
इससे पहले के मुर्दे बाहर आने लगें मकबरों से ...

Monday, November 17, 2014

वो सांवरी सी लड़की

मेरी बेचैन आँखों को बड़ा चैन मिले
देखूं जब भी मैं जी भरके
वो सांवरी सी लड़की ...
छू लें जो मुझको कभी उसकी निगाहें
नजरें झुकाये शर्माए
वो सांवरी सी लड़की ...

मैं बैठा ही रहूँ आगोश में उसके
देखता ही रहूँ हसीनियां उसकी
आँखों पे गालों पे माथे पे हाथों पे
उसे चूमती ही रहें मेरी बेसबर निगाहें
क्या क्या सोचे मुझे देखे देखती ही रहे
वो सांवरी सी लड़की ...

मेरे कंधे पर अपना सर टिका के वो
ख़ामोशी से देखती रहे लहरों को
पकड़के हाथ मेरा वो देखती रहे
मेरे हाथों की बेबस लकीरों को
कभी कुछ पूछे कभी कुछ बताये मुझे
वो सांवरी सी लड़की ...

मीलों चले मेरे साथ साथ हाथों में हाथ
कभी चुप रहे वो कभी करे कोई बात
कभी मुस्कुराये कभी जोर से हँसे
कभी तारीफ करे कभी तंज कसे
क्या होगा अपना कैसे जिएंगे मुझसे पूछे
वो सांवरी सी लड़की ...

Thursday, November 13, 2014

सिकंदर

इस धोखे में मत रहना के तू कलन्दर है कोई ...
तू अगर जो दरिया है  , तो समंदर है कोई ...
इस शहर की रंगीनियों की हकीकत कुछ और है ...
वो बूढ़ा जो भूखा सोता है , सुना है सिकंदर है कोई ...

Wednesday, November 12, 2014

दीवार


अच्छा हो के दिलों में फिर से प्यार आ जाए ...
इससे पहले की आँगन में दीवार आ जाए ...

माथे से अपनी कीमत की पर्ची हटा लूँ मैं ...
इससे पहले के मेरे घर में बाजार आ जाए ...

खुदा करे किसी रोज मैं घर से गुस्से में निकलूं ...
और सामने से कोई गद्दार आ जाए ...

काश के मोहब्बत के नसीब में ऐसा होता ...
जो साथ है इस पार वो उस पार आ जाए ...

गरीब झोंपड़ी मेरी महल सी चमक उठे ...
ठहरने इसमें कभी अगर मेरा यार आ जाए ...

बेहतर हो तू रास्ते पर आ जाए दोस्त मेरे ...
इससे पहले के हाथ में हथियार आ जाए ...

गर पास से तू गुजर जाए खुशबू बिखेरती ...
खुदा कसम रूखे चेहरों पर निखार आ जाए ...

वो बना रहा हो जोड़े ईश्क और हुस्न के...
खुदा करे तेरे हिस्से ये गंवार आ जाए...

Tuesday, November 11, 2014

तराजू

इक दौर में मेरे हाथों एक खूबसूरत सा दिल टूट गया था ...
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में एक अच्छा साथी छूट गया था ...

अपने अपने हाल पर हमने इक दूजे को छोड़ दिया ...
खेल खेल में हमने उस दिन हर एक नाता तोड़ लिया ...

निकल पड़े फिर दोनों पंछी अपने अपने रास्ते...
किसने किसको दर्द दिया ना जाने किसके वास्ते ...

मोहब्बतों की राहों में कोई उसे मिला कोई मुझे मिला ...
ना उस जैसा कोई मुझे मिला ना मुझ जैसा कोई उसे मिला  ...

फैसला जो गलत किया था , ये तो आखिर होना ही था ...
मैंने रुलाया किसी को , मुझको तो फिर रोना ही था ...

मुझ जैसे कुसूरवार को माफ़ी नहीं दिया करते ...
जो जान लूटने वाले हों वो लम्बा नहीं जिया करते ...
आज अपना दिल टूटा तो बात समझ में आई ...
तराजू खुदाओं के कभी ना-इंसाफी नहीं किया करते ...